गुरुवार, 8 जुलाई 2010

सत्‍तापक्ष और विपक्ष और इन दोनों से बिरयानी खींचता अपना भ्रष्‍ट मीडिया

पिछले लंबे समय से मै ब्‍लागिंग से दूर रहा जिसकी वजह थी मेरी नौकरी। कुछ सामयिक और कुछ असामयिक कारणों से अत्‍यधिक कार्य हो गया था और चाह कर भी समय नहीं निकाल पा रहा था इसलिए लेखन को विश्राम देकर कर्म किए जा रहा था। इस दौरान बहुत सारी घटनाएं घट गईं। मन करता था – इस बात पर लिखूं – इस बात पर लिखूं पर एक पंथ दो काज हो न सके। अब जब काम का बोझ हल्‍का हुआ तो एक बार पुन: अपने पुराने शगल पर लौट आया। महंगाई और बंद, सत्‍तापक्ष और विपक्ष और इन दोनों से बिरयानी खींचता अपना भ्रष्‍ट मीडिया इस पर लिखने का बहुत मन था। मैं समझता हूं कि भारत का आम आदमी इन तीनों से ही त्रस्‍त है और लगातार अवसादग्रस्‍त है (मूल रुप से तो मैं कवि हूं इसलिए कवित्‍व बाहर आ जाता है) । मैं एक नया ब्‍लॉग बनाना चाहता हूं जिसका नाम भी मैंने सोचा हुआ है *मीडिया की नौटंकी* आपको मेरा यह ख्‍याल कैसा लगा जरा दिल खोलकर बताइए ।

बुधवार, 30 सितंबर 2009

रावण

कल रावण जला
गलियों में, मोहल्‍लों में,
गांवों में, शहरों में,

धू धू कर उसे जलते देखा
मैंने देखा, और भीड ने देखा
गांव ने देखा, शहर ने देखा

बजती ताली की थापों ने सुना
छोटे बच्‍चों की किलकारी ने सुना
और उस भीड में हम सबने सुना

जब रावण जला कर बाहर निकले
तो हर तरफ एक रावण था
हर रुप रंग का रावण था

मोटर साइकिल पर हार्न बजाता
कारों में शोर मचाता,
गलियों में, बसों में झगडा करता और चिल्‍लाता

हर गली में रावण था
दूसरों की सीता हरने को तैयार
राम का वध करने को तैयार

तो फिर हमने किसे मारा था?
हमने क्‍यों तालियां बजाईं थीं?
हमने क्‍यों खुशियां मनाई थीं?

रविवार, 30 अगस्त 2009

सच का सामना : और सत्‍य की खोज

बहुत पहले भारतीय दूरदर्शन पर एक सीरियल आया करता था “Discovery of India” विविधता भरे इस सीरियल को श्याम बेनेगल ने अपने उत्कृष् निर्देशन में अविस्मरणीय बना दिया। चूंकि तब दूरदर्शन पर सीरियल शुरु ही हुए थे तब का बाल टी0 वी0 समय की सीढियां चढते चढते परिपक् होकर और इसी प्रकार की खोजों से उत्साहित अब यौवन की पराकाष्ठा पर जा पहुंचा है। सास बहू, गली मोहल्ला, हल्ला गुल्ला और कई प्रकार के रियल टी0 वी0 शोज़ होते हुए वस्तुत: यह सत् की खोज से आगे निकल चुका है। India अब Discover हो चुका है इसलिए अब फोकस Indians पर है। Big Boss आया और चला गया। Big Boss Season 2 आया और चला गया। हर सीरियल पर शर्म और हया के परदे झीने होते गए। Sarkar Ki Dunia आया जो अपने साथ नए सवाल और बवाल लाया। और अब आया है एक क्रान्तिकारी टी0 वी0 शो।सच का सामना हम झूठे भारतीयों को सच से रु रु कराता एक सीरियल। कुछ पुरानी सोच के लोगों के लिए (?) 20-25 वर्ष पुराने शर्म और हया के घिसे हुए परदे तार तार हो गए। तो वहीं सीरियल निर्माताओं के अनुसार सच बोलने के लिए साहस की जरुरत होती है और हिम्मती लोग ही दुनिया के सामने सच स्वीकार करने की ताकत रखते हैं। तो लीजिए इस Certificate के साथ आप प्याज के छिलके की तरह सच की परतें खोलते रहिए और बदले में सिक्कों की खनक बढती जाएगी। यानि सच हो गया द्रोपदी का चीर हरण हो गया। और हम लोग पारिवारिक दर्शकों की जगह दु:शासन के दरबारियों तबदील हो जाते हैं कि शायद अब चीर हरण की प्रक्रिया पूरी हो और वह सच देखने को मिले जिसका बेसब्री या बेशर्मी से इंतजार है। पर खा गए गच्चा। वहां द्रोपदी की साड़ी खुलने से रोकने के लिए कृण् भगवान मौजूद थे यहां पर एक अदृश् मशीन मौजूद है। बोलने वाले को पता है कि सच क्या है और सुनने वालों को, पर सच और झूठ का फैसला तो मशीन पहले ही कर चुकी है। न्यायालय में जजों की रिक्तिओं के लिए परेशान हो रही हमारी न्यायिक व्यवस्था को और पेंडिंग पड़े लाखों मुकदमों के लिए जनता को चिंता करने की जरुरत नहीं है क्योंकि सच और झूठ का तुरत फुरत फैसला करने के लिए एक मशीन गई है। पर हे भगवान अब किरण बेदी की कचहरी का क्या होगा? वह बड़े अरमानों से पुरानी कचहरी का फर्नीचर दुबारा रंग रौगन करवा कर लौटी हैं। खैर भटकाव की जरुरत नहीं। मुद्दे पर लौटते हैं।सच का सामना पहला एपीसोड। हॉट सीट पर सच की कसौटी पर कसे जाने के लिए मौजूद हैं थियेटरबाजी से गुजर बसर करने वाले एक प्रौढ़ व्यक्ति। देखिए सच का सामना करने के लिए मिला भी तो कितना सच्चा और जीवंत पात्र। जीवन में कई शादियां कर चुके इन साहब के साथ आई हैं इनकी एक (पूर्व) पत्नी, एक बुजुर्ग Girl Friend और लगभग 35 वर्ष की बेटी और दामाद। एव जवान बेटी के सामने सच की परतें उघड़ रही हैं। सच हो गया मानो आम या मिर्च का अचार हो गया जिसे रेल का यात्री तो चटकारे ले लेकर खा रहा है और सहयात्री थूक गटक गटक कर अपनी टपकती लार को बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। सच तरह तरह के रुपों में सामने रहा है। पहले बालरुप में मसलन :- क्या अपने प्रवास के दौरान आपने होटलों से तौलिए चुराए हैं ? पर बढ़ती पैसे की खनक के साथ साथ सच भी जवान होता जा रहा है। मसलन :- क्या आपके शारीरिक संबंध अपनी बेटी की उम्र से भी कम लड़कियों के साथ रहे हैं? क्या आपने वेश्याओं के साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं? और एपीसोड का अंत होता है पुरानी फिल्मों के प्रणय दृश्यों की तरह जिसमेंअसलीसीन आने के बजाए ट्रेन का इंजन गुजरता है या फड़फड़ा कर पंछी उड़ जाते हैं और इंतजार करते दर्शक लुटा पिटा महसूस करते हैं इस प्रकार एक व्यक्ति सच के हमाम में नहा धोकर खाली हाथ चला जाता है। पर प्रभु यहां तो सच बोलने वाले महानुभावों की लाइन लगी हुई है। एक एपीसोड में एक कन्या जाती हैं। खूबसूरत अर्थात टी0 वी0 पर पेश करने लायक और अविवाहित यानि कि टी0 आर0 पी0 बढ़ाने की उन्मादकता भी मौजूद। और इन मोहतरमा को भी अपनी खूबसूरती का फायदा उठाने से कोई गुरेज नहीं। वे अपने उस मंगेतर के साथ सच की हॉट सीट पर मौजूद हैं जो पिछले दो सालों से उनका मंगेतर है। साथ में हैं उनके तलाकशुदा माता पिता। लीजिए साहब। शुरुआती लटको झटकों के बाद सच के मजेदार छिलके उतरने शुरु हो गए हैं। दर्शकों ने थूक गटकना भी शुरु कर दिया है। नए मंगेतर के जीवन में आने से पूर्व भी क्या कोई और जीवन में था? क्या अपनी खूबसूरती का फायदा जीवन में आगे बढ़ने के लिए उठाया? क्या इससे पहले किसी की शादी तुड़वाई? क्या वर्तमान मंगेतर के साथ घर में बताए बिना एक हफते बाहर रहीं? क्या अपने वर्तमान मंगेतर के साथ बेबफाई की? ले लो जी मजा। और सच का अंत? फ्री में। जिन सिक्कों की खनक के लिए इतना सच(?) बोला गया वह तो मशीन की अनंत गहराइयों में कहीं खो गया। अब रोइए। सुकबुकाइए।

अभी जारी है ……………..

शनिवार, 15 अगस्त 2009

आजादी का जश्‍न

कुछ आकस्मिक व्‍यस्‍तता की वजह से 14 और 15 अगस्‍त के अखबारों को मैंने 15 अगस्‍त की सुबह ही पढना शुरु किया। 15 अगस्‍त के अखबार में एक ओर जहां मैंने आजादी का जश्‍न देखा, वीरता के लिए सम्‍मानित होते हुए शूरवीरों के फोटो देखे वहीं 14 अगस्‍त के जिस समाचार पर नजर गई वह इस दिल्‍ली शहर में घट रही या कहें लगातार बढ रही प्रशासन की काहिली और हमलोगों की बुजदिली का वर्णन करती एक छोटी सी घटना है। घटना के नायक एक 70 वर्ष के बुर्जुग हैं, खलनायक तीन सडक छाप टपोरी हैं और तमाशबीन हमारे और आप जैसे लोग हैं जिनकी नसों में लगता है अब खून की जगह पानी बह रहा है। वारदात का छोटा सा विवरण निम्‍न है:-
गुरुवार की सुबह आरटीवी(दिल्‍ली की दुखियारी जनता के लिए यमराज की सवारी और कुछ के लिए पैसा उगाही का एक और साधन) के गेट पर खड़े तीन बदमाश आरटीवी में सवार एक लड़की से छेड़खानी कर रहे थे। जब एक बुजुर्ग ने इसका विरोध किया, तो बदमाशों ने उनकी जांघ पर चाकू मार दिया। हांलाकि पूर्वी दिल्ली के वरिष्ठ पुलिस अफसरों ने इसका खंडन करते हुए कहा है कि बुजुर्ग आरटीवी से नीचे उतरने के लिए गेट पर पहुंचे, लेकिन तीनों बदमाश फुटबोर्ड पर खड़े थे। बुजुर्ग ने उनसे कहा कि या तो अंदर आ जाओ या नीचे उतर जाओ। इसी बात पर बदमाशों के साथ उनकी कहासुनी हो गई और एक बदमाश ने उन्हें चाकू मार दिया। हालांकि वारदात के बाद तीनों बदमाश फरार हो गए थे, लेकिन पुलिस ने महेश और तेजपाल उर्फ कालू को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस तीसरे बदमाश सुभाष को तलाश रही है।

एक ऐसे बुर्जुग को जिनसे मेरा कोई परिचय या रिश्‍ता नाता नहीं था उन्‍हें मेरी भाव भीनी श्रृद्वां‍जलि। पर क्‍या यह श्रृद्वां‍जलि सही या पूर्ण है?

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