कुछ आकस्मिक व्यस्तता की वजह से 14 और 15 अगस्त के अखबारों को मैंने 15 अगस्त की सुबह ही पढना शुरु किया। 15 अगस्त के अखबार में एक ओर जहां मैंने आजादी का जश्न देखा, वीरता के लिए सम्मानित होते हुए शूरवीरों के फोटो देखे वहीं 14 अगस्त के जिस समाचार पर नजर गई वह इस दिल्ली शहर में घट रही या कहें लगातार बढ रही प्रशासन की काहिली और हमलोगों की बुजदिली का वर्णन करती एक छोटी सी घटना है। घटना के नायक एक 70 वर्ष के बुर्जुग हैं, खलनायक तीन सडक छाप टपोरी हैं और तमाशबीन हमारे और आप जैसे लोग हैं जिनकी नसों में लगता है अब खून की जगह पानी बह रहा है। वारदात का छोटा सा विवरण निम्न है:-
गुरुवार की सुबह आरटीवी(दिल्ली की दुखियारी जनता के लिए यमराज की सवारी और कुछ के लिए पैसा उगाही का एक और साधन) के गेट पर खड़े तीन बदमाश आरटीवी में सवार एक लड़की से छेड़खानी कर रहे थे। जब एक बुजुर्ग ने इसका विरोध किया, तो बदमाशों ने उनकी जांघ पर चाकू मार दिया। हांलाकि पूर्वी दिल्ली के वरिष्ठ पुलिस अफसरों ने इसका खंडन करते हुए कहा है कि बुजुर्ग आरटीवी से नीचे उतरने के लिए गेट पर पहुंचे, लेकिन तीनों बदमाश फुटबोर्ड पर खड़े थे। बुजुर्ग ने उनसे कहा कि या तो अंदर आ जाओ या नीचे उतर जाओ। इसी बात पर बदमाशों के साथ उनकी कहासुनी हो गई और एक बदमाश ने उन्हें चाकू मार दिया। हालांकि वारदात के बाद तीनों बदमाश फरार हो गए थे, लेकिन पुलिस ने महेश और तेजपाल उर्फ कालू को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस तीसरे बदमाश सुभाष को तलाश रही है।
एक ऐसे बुर्जुग को जिनसे मेरा कोई परिचय या रिश्ता नाता नहीं था उन्हें मेरी भाव भीनी श्रृद्वांजलि। पर क्या यह श्रृद्वांजलि सही या पूर्ण है?
जब तक हम ऐसी ही छद्म पहचान के साथ बिना किसी परिचय या रिश्ते के, इस वास्तविक संसार में इन दुष्टों का दमन कर लोगों की मदद करना नहीं सीख लेते तब तक यह श्रृद्धांजलि उचित नहीं है।
जवाब देंहटाएंdekhiye or hum azadi ka jashan mnate hai....
जवाब देंहटाएंगर हम संवेदन शील नही रहेंगे तो ऐसी वारदात हमारे साथ भी घट सकती है ..लोग 'परदुख: शीतल 'ही समझते हैं ..!
जवाब देंहटाएं'आईये हाथ उठायें हम भी ..' ये समय की दरकार है ..कबतक अलिप्त रहके तमाशबीनों की तरह तमाशा देखेंगे ?
बड़ा अच्छा सवाल उठाया है आपने!
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आपकी बात बहुमूल्य और सामयिक है. मेरे दिल की बात तो सभी टिप्पणीकारों ने पहले ही कह दी. 'आईये हाथ उठायें हम भी ...' जब सच हाथ उठाता है तो झूठ की शामत आती है. लिखते रहो, जगाते रहो, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएं@ रवि जी दु:ख यही है कि जिस देश में भगत सिहं और आजाद जैसे न जाने कितने वीर पैदा हुए हैं उसी देश की सडकों, गलियों, घरों और बसों में ऐसी घटनाएं हो रही हैं। दुष्टों का दमन हो और हमारे और आपके हाथों से हो इसी उम्मीद में यह लेख लिखा है। @राज जी, हम और आप केवल आजादी का जश्न ही नहीं मना रहे, अर्न्तमन में कहीं न कहीं आत्मावलोकन भी चल रहा है शायद इसीलिए मैंने लिखा और आपने अफसोस प्रकट किया है। @ शमा जी, जब आप जैसे लोग अलख जगाएगें तो ‘हाथ उठेगें, हमारे भी और आपके भी’ । धन्यवाद। Smart Indian - स्मार्ट इंडियन जी, आपकी प्रेरणादायक टिप्पणी के लिए आपका शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंस्वागत है।
जवाब देंहटाएंहमें सोचना पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंस्वागत है.
गुलमोहर का फूल
आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं
जवाब देंहटाएंस्वागत है
आजादी की हकीक़त है ...
जवाब देंहटाएंwelcome to blog-world
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HUMKO APNE DILON MEIN BHI VO JAJBA JAGAANA HOGA .......KISI BHI ANYAAY KE VIRUDH AAWAAZ UTHANA HOGA ........ TABHI POORI SHRADHAANJALI HOGI ...... AAPKA LEKH UCHIT HAI ..... SAMAYANUSAAR HAI...
जवाब देंहटाएंआपकी भावनाएँ युवाओं को रह देंगी .....!!
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