बुधवार, 30 सितंबर 2009

रावण

कल रावण जला
गलियों में, मोहल्‍लों में,
गांवों में, शहरों में,

धू धू कर उसे जलते देखा
मैंने देखा, और भीड ने देखा
गांव ने देखा, शहर ने देखा

बजती ताली की थापों ने सुना
छोटे बच्‍चों की किलकारी ने सुना
और उस भीड में हम सबने सुना

जब रावण जला कर बाहर निकले
तो हर तरफ एक रावण था
हर रुप रंग का रावण था

मोटर साइकिल पर हार्न बजाता
कारों में शोर मचाता,
गलियों में, बसों में झगडा करता और चिल्‍लाता

हर गली में रावण था
दूसरों की सीता हरने को तैयार
राम का वध करने को तैयार

तो फिर हमने किसे मारा था?
हमने क्‍यों तालियां बजाईं थीं?
हमने क्‍यों खुशियां मनाई थीं?

6 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ मैंने भी सुना था जलते जलते रावण कह रहा था बेटा अगलों बरस फिर जलाने आना हा हा . अच्छी रचना . बधाई

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  2. शास्त्रों के अनुसार रावण की नाभि में अमृत था| शायद आज भी है| हजारों सालों से हर साल जलता आ रहा है फिर भी हर तरफ मौजूद है|
    इतनी अच्छी रचना के लिए बधाई!

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  3. सत्य के करीब लिखा है आपने .... आज हर रोज़ नया रावण निकल कर आ रहा है ......... समाज का सही चित्रण है आपकी रचना ........

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  4. साल की सबसे अंधेरी रात में
    दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
    लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

    कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
    अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
    झटकें सभी तकरार ज्यों आयी-गयी

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    दीपावली पर समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ!
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  5. बहुत सुन्दर रचना
    बहुत बहुत धन्यवाद

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