रविवार, 30 अगस्त 2009

सच का सामना : और सत्‍य की खोज

बहुत पहले भारतीय दूरदर्शन पर एक सीरियल आया करता था “Discovery of India” विविधता भरे इस सीरियल को श्याम बेनेगल ने अपने उत्कृष् निर्देशन में अविस्मरणीय बना दिया। चूंकि तब दूरदर्शन पर सीरियल शुरु ही हुए थे तब का बाल टी0 वी0 समय की सीढियां चढते चढते परिपक् होकर और इसी प्रकार की खोजों से उत्साहित अब यौवन की पराकाष्ठा पर जा पहुंचा है। सास बहू, गली मोहल्ला, हल्ला गुल्ला और कई प्रकार के रियल टी0 वी0 शोज़ होते हुए वस्तुत: यह सत् की खोज से आगे निकल चुका है। India अब Discover हो चुका है इसलिए अब फोकस Indians पर है। Big Boss आया और चला गया। Big Boss Season 2 आया और चला गया। हर सीरियल पर शर्म और हया के परदे झीने होते गए। Sarkar Ki Dunia आया जो अपने साथ नए सवाल और बवाल लाया। और अब आया है एक क्रान्तिकारी टी0 वी0 शो।सच का सामना हम झूठे भारतीयों को सच से रु रु कराता एक सीरियल। कुछ पुरानी सोच के लोगों के लिए (?) 20-25 वर्ष पुराने शर्म और हया के घिसे हुए परदे तार तार हो गए। तो वहीं सीरियल निर्माताओं के अनुसार सच बोलने के लिए साहस की जरुरत होती है और हिम्मती लोग ही दुनिया के सामने सच स्वीकार करने की ताकत रखते हैं। तो लीजिए इस Certificate के साथ आप प्याज के छिलके की तरह सच की परतें खोलते रहिए और बदले में सिक्कों की खनक बढती जाएगी। यानि सच हो गया द्रोपदी का चीर हरण हो गया। और हम लोग पारिवारिक दर्शकों की जगह दु:शासन के दरबारियों तबदील हो जाते हैं कि शायद अब चीर हरण की प्रक्रिया पूरी हो और वह सच देखने को मिले जिसका बेसब्री या बेशर्मी से इंतजार है। पर खा गए गच्चा। वहां द्रोपदी की साड़ी खुलने से रोकने के लिए कृण् भगवान मौजूद थे यहां पर एक अदृश् मशीन मौजूद है। बोलने वाले को पता है कि सच क्या है और सुनने वालों को, पर सच और झूठ का फैसला तो मशीन पहले ही कर चुकी है। न्यायालय में जजों की रिक्तिओं के लिए परेशान हो रही हमारी न्यायिक व्यवस्था को और पेंडिंग पड़े लाखों मुकदमों के लिए जनता को चिंता करने की जरुरत नहीं है क्योंकि सच और झूठ का तुरत फुरत फैसला करने के लिए एक मशीन गई है। पर हे भगवान अब किरण बेदी की कचहरी का क्या होगा? वह बड़े अरमानों से पुरानी कचहरी का फर्नीचर दुबारा रंग रौगन करवा कर लौटी हैं। खैर भटकाव की जरुरत नहीं। मुद्दे पर लौटते हैं।सच का सामना पहला एपीसोड। हॉट सीट पर सच की कसौटी पर कसे जाने के लिए मौजूद हैं थियेटरबाजी से गुजर बसर करने वाले एक प्रौढ़ व्यक्ति। देखिए सच का सामना करने के लिए मिला भी तो कितना सच्चा और जीवंत पात्र। जीवन में कई शादियां कर चुके इन साहब के साथ आई हैं इनकी एक (पूर्व) पत्नी, एक बुजुर्ग Girl Friend और लगभग 35 वर्ष की बेटी और दामाद। एव जवान बेटी के सामने सच की परतें उघड़ रही हैं। सच हो गया मानो आम या मिर्च का अचार हो गया जिसे रेल का यात्री तो चटकारे ले लेकर खा रहा है और सहयात्री थूक गटक गटक कर अपनी टपकती लार को बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। सच तरह तरह के रुपों में सामने रहा है। पहले बालरुप में मसलन :- क्या अपने प्रवास के दौरान आपने होटलों से तौलिए चुराए हैं ? पर बढ़ती पैसे की खनक के साथ साथ सच भी जवान होता जा रहा है। मसलन :- क्या आपके शारीरिक संबंध अपनी बेटी की उम्र से भी कम लड़कियों के साथ रहे हैं? क्या आपने वेश्याओं के साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं? और एपीसोड का अंत होता है पुरानी फिल्मों के प्रणय दृश्यों की तरह जिसमेंअसलीसीन आने के बजाए ट्रेन का इंजन गुजरता है या फड़फड़ा कर पंछी उड़ जाते हैं और इंतजार करते दर्शक लुटा पिटा महसूस करते हैं इस प्रकार एक व्यक्ति सच के हमाम में नहा धोकर खाली हाथ चला जाता है। पर प्रभु यहां तो सच बोलने वाले महानुभावों की लाइन लगी हुई है। एक एपीसोड में एक कन्या जाती हैं। खूबसूरत अर्थात टी0 वी0 पर पेश करने लायक और अविवाहित यानि कि टी0 आर0 पी0 बढ़ाने की उन्मादकता भी मौजूद। और इन मोहतरमा को भी अपनी खूबसूरती का फायदा उठाने से कोई गुरेज नहीं। वे अपने उस मंगेतर के साथ सच की हॉट सीट पर मौजूद हैं जो पिछले दो सालों से उनका मंगेतर है। साथ में हैं उनके तलाकशुदा माता पिता। लीजिए साहब। शुरुआती लटको झटकों के बाद सच के मजेदार छिलके उतरने शुरु हो गए हैं। दर्शकों ने थूक गटकना भी शुरु कर दिया है। नए मंगेतर के जीवन में आने से पूर्व भी क्या कोई और जीवन में था? क्या अपनी खूबसूरती का फायदा जीवन में आगे बढ़ने के लिए उठाया? क्या इससे पहले किसी की शादी तुड़वाई? क्या वर्तमान मंगेतर के साथ घर में बताए बिना एक हफते बाहर रहीं? क्या अपने वर्तमान मंगेतर के साथ बेबफाई की? ले लो जी मजा। और सच का अंत? फ्री में। जिन सिक्कों की खनक के लिए इतना सच(?) बोला गया वह तो मशीन की अनंत गहराइयों में कहीं खो गया। अब रोइए। सुकबुकाइए।

अभी जारी है ……………..

5 टिप्‍पणियां:

  1. इंसान के भीतर छुपे रहस्यों को बाहर लाकर मनोविकारों से मुक्ति दिलाने का उपाय अक्सर मानसिक चिकित्सकों द्वारा किया जाता रहा है ..हाँ ..इसका असर भी होता है ..मगर पैसों के लिए यह सब किया जाना ...किसी की निजता को भंग करना ...जघन्य अपराध है ..!!
    बहुत बढ़िया लिखा ...शुभकामनायें ..!!

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  2. आपका lekh bahoot ही lajawaab है .......... vyangaatmak shaili में आपने ऐसे kaarykramon की achhee baghiya ughedi है .....

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  3. हमेशा की तरह आपके विचार स्पष्ट और प्रभावी हैं. आपने ठीक ही कहा है, यह किस किस्म का सच है और पैसे के या दुसरे निहित स्वार्थों के लिए बोला जाने वाला सच सा कथन असल में कितना सच होता है यह तो अपनी डूबती नय्या के लिए कम गहरी नदियाँ तलाशते जसवंत सिंह की किताबों से ही नज़र आ आता है.

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  4. श्रमसाध्य इस लेख के लिए बधाई स्वीकार करें।

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